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कविता
लो रात काट दी
भवानीप्रसाद मिश्र
लो रात काट दी हमने गिनकर तारे
मनसूबे सारे अंधकार के हारे
शीर्ष पर जाएँ
हिंदी समय में भवानीप्रसाद मिश्र की रचनाएँ
कविताएँ
अकर्ता
अंदाज
अधूरे ही
अपने आप में
असंदिग्ध एक उजाला
आँखें बोलेंगी
आराम से भाई जिंदगी
आश्वस्त
इदं न मम
इस दुनिया को सँवारना
क्या हर्ज है
क्यों टेरा
कला-1
कला-2
काफी दिन हो गए
गीत-आघात
गीत-फरोश
घर और वन और मन
घर की याद
चुपचाप उल्लास
जैसे याद आ जाता है
जूही ने प्यार किया
जाहिल मेरे बाने
देखो कि
पूरे एक वर्ष
पूर्णमदः
पीताभ किरन-पंछी
बूँद टपकी एक नभ से
बेदर्द
बुनी हुई रस्सी
भले आदमी
मैं तैयार नहीं था
मंगल-वर्षा
ममेदम
मेरे वृंत पर
लो रात काट दी
वस्तुतः
वाणी की दीनता
शून्य होकर
संगाती
संगीत
सतपुड़ा के जंगल
सत्यकाम
स्नेह-शपथ
समझो भी
समयगंधा
स्वप्न-शेष
सावधान
सिर्फ दो
होने का दावा
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